कब मिलिहें पियवा हमार निरमोहिया रे,
कब मिहें पियवा हमार।
बइठल करीं हम मन मे गुनावन
चढ़ल जवनिया भइली भकसावन
ताना मारे सखिया हजार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
सोरहों सिंगार करी करिले सगुनवाँ
पिया नाहीं छोड़िहन अबकी फगुनवाँ
नइहर में नइखे गुजार निमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।
दिन रात बहेला नयनवाँ से पानी
तोरा बिना पियवा बेकार जिन्दगानी
काहे दिहलऽ सुधिया बिसार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
कहत महेन्द्र गोरी धीर धरऽ मनवाँ,
फागुन चढ़त अइहें तोहरो मोहनवाँ
मनवाँ के पूरी अरमान निरमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *