मैं कैसे ऊधो जोगिन भेस बनइहों।
कर कंगन को काह करूँ मैं वेनी शीश दुरैहों।
कटि को नूपुर काह करइहो कइसे खाक लगइहों।
कुंडल कान नैन के काजर फूलन सेज गँवइहों।
महल छोड़ बन कइसे रहिहों मृग के छाल डँसइहों।
गजमुक्ता के हार त्याग के तुलसी हार लगइहों।
झोरी काँख कर लिया कमंडल घर घर अलख जगइहों।
ए ऊधो माधो से कहिहों वेगी श्याम घर अइहों।
द्विज महेन्द्र बिनु देखे मोहन नैन चैन ना पइहों।
                                  

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *