बैठी विधुबदनी कृशोदरी दरी के बीच चोटिन को खींच-खींच तिरछी निहारती।
कोई पानदान पिकदान लिए ठाढ़ी कोई नायिका नवेली केलि अंचल सुहावती।
नवल किशोरी गोरी अबहीं बयस थोरी बात बोलत रस भोरी अंग-अंग को सँवारती।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र दमकत मुखारबिन्द लाजत अरबिन्द ये तो आपको निहारती।