सुरूर-अफ़ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
हुआ वो बज़्म-ए-मय में बे-हिजाब आहिस्ता आहिस्ता

रूख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कि जैसे हो तुलू-ए-आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता

किया जब शौक़ ने उस से ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता
हया ने भी दिया आख़िर जवाब आहिस्ता आहिस्ता

वो मस्ती-ख़ेज़ नरजें रफ़्ता रफ़्ता ले उड़ीं मुझ को
किया काशना-ए-दिल को ख़राब आहिस्ता आहिस्ता

बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में
कि रूख़्सत हो गया उस का हिजाब आहिस्ता आहिस्ता

किया कामिल हमें इक उम्र में सोज़-ए-मोहब्बत ने
हुए हम आतिश-ए-ग़म से कबाब आहिस्ता आहिस्ता

अबस था ज़ब्त का दावा सितम उस के सितम निकले
निगाहें हो गईं आख़िर पुर-आब आहिस्ता आहिस्ता

दबिस्तान-ए-वफ़ा में उम्र भर की सफ़हा-गर्दानी
समझ में आई उल्फ़त की किताब आहिस्ता आहिस्ता

ब-क़द्र-ए-शौक़ उसे ताब-ए-तपीदन थी कहाँ क़ातिल
किया बिस्मिल ने तेरे इजि़्तराब आहिस्ता आहिस्ता

बला हैं शाहिदान-ए-शहर ‘वहशत’ मय-परस्ती में
हुआ मैं उन की सोहबत में ख़राब आहिस्ता आहिस्ता

By shayar

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