किसी तरह न मेरे दिल को जब क़रार आए
मेरी बला से ख़जाँ आए या बहार आए
किसी आलम-ए-फ़ितरत का तक़ाज़ा है
जिधर निगाह-ए-करम हो उधर बहार आए
नफ़स नफ़स मुतग़य्युर है आलम-ए-फ़ानी
किसी को आए तो किस तरह ऐतबार आए
तेरे करम के तसद्दुक़ तेरे करम के नसार
उम्मीद-वार गए हम उम्मीद-वार आए
नजात रूह को हस्ती की कशमकश से कहाँ
आदम में जा के फ़क़त नीस्ती उतार आए
वो बादा-नोश-ए-हक़ीक़त है इस जहाँ में ‘रवाँ’
के झूम जाए फ़लक गर उसे ख़ुमार आए