झूमर

आइल सुख भादरा गरजे घोर बादला
एकेली काटब कैसे निशिया
रे पिया भेल परदेशिया
हेरी अंधरिया राती आँखी लोरें भीजे छाती
बिजुलिया उठत झुलसिया रे
गरजे घोर अशनि झींगुर दादुर ध्वनि
सुनी मन लागि उठे हँसिया रे
विरह व्याकुल प्राण मदने हानत वाण
भवप्रीता गति श्याम-शशिया रे।

By shayar

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