नामा गया कोई न कोई नामाबर गया|
तेरी ख़बर न आई ज़माना गुज़र गया|

हँसता हूँ यूँ कि हिज्र की रातें गुज़र गईं,
रोता हूँ यूँ कि लुत्फ़-ए-दुआ-ए-सहर गया|

अब मुझ को है क़रार तो सब को क़रार है,
दिल क्या ठहर गया कि ज़माना गुज़र गया|

या रब नहीं मैं वाक़िफ़-ए-रुदाद-ए-ज़िन्दगी,
इतना ही याद है कि जिया और मर गया|

By shayar

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