यारब! गमे- दुनिया से इक लम्हे की फ़ुर्सत दे कुछ फ़िक्रे-वतन कर लूँ इतनी मुझे मुहलत दे Post navigation बक़द्र-ए-शौक़ इक़रार-ए-वफ़ा क्या| दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में