तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह।
अपनी निगाह को भी कभी आज़मा के देख॥

परदे तमाम उठा के न मायूसे-जलवा हो।
उठ और अपने दिल की भी चिलमन उठा के देख॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *