उन के घर आना नहीं जाना नहीं
मुद्दतें गुज़रीं वो याराना नहीं

नज़ा में वो ये तसल्ली दे गए
मौत भी आए तो घबराना नहीं

क्या रहेगा इश्क़ में साबित-क़दम
दश्त कोई ग़ैर ने छाना नहीं

बे-बुलाए जाऊँ उस महफ़िल में क्यूँ
गालियाँ ना-हक़ मुझे खाना नहीं

मैं वही हूँ जिस को कहते थे ‘रशीद’
तुम ने अब तक मुझ को पहचाना नहीं

By shayar

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