तुम हो मेरे मन के मोहन मै हूँ प्रेम अभिलाषी।
तुम्हारी माया हरती मन को नही अपराधी ये दासी।।
प्रभूजी तुम्हारी मूर्ती श्यामबिहारी
मोहत योगी आवरा संसारी,
मै तो अबला बृज की नारी उन चरण तीरथ-वासी।
मै हूँ तुम्हारे मोहन रूप निहारे नर भी आपन भूलते सारे
रमणी भाओ प्रभू जागत मन में चाहे हो सन्यासी।
प्रभूजी नाही अपराधी दासी। प्रभूजी