आ बसन्त गेल
सतत सुखद गगन विमल परमकान्त भेल ॥1॥

मुदित विहंग विटप डार खेलत खूंदत बारबार
कूजइ मनहु करइ लार
मिलइ जुलइ प्रेमि पियार
भेल हेल मेल ॥2॥

कुहक सघन घोर
सिसिर हिम कठोर
पीर भेल भोर
करइ प्रकृति विषम दुसह विपति ठेलपेल।
खेल औ कुलेल ॥3॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *