जह्ले-ख़िरद ने दिन ये दिखाए
घट गए इन्साँ बढ़ गए साए

हाय वो क्योंकर दिल बहलाए
ग़म भी जिसको रास न आए

ज़िद पर इश्क़ अगर आ जाए
पानी छिड़के , आग लगाए

दिल पे कुछ ऐसा वक़्त पड़ा है
भागे, लेकिन राह न पाए

कैसा मजाज़ और कैसी हक़ीक़त
अपने ही जल्वे अपने ही साए

कारे- ज़माना जितना- जितना
बनता जाए बिगड़ता जाए

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *