कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

ईमान-ओ-कुफ़्र और न दुनिया-ओ- दीं  रहे
ऐ इश्क़ !शादबाश  कि तनहा हमीं रहे

या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे

मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम की वुस’अतें
क़िस्मत में कू-ए-यार  की दो ग़ज़ ज़मीं रहे

दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़  के ये सख़्त- मरहले
हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे

इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे

By shayar

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