दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गयी कि दोस्त का पैगाम आ गया

जब कोई ज़िक्रे-गर्दिशे-अय्याम आ गया
बेइख्तियार लब पे तिरा नाम आ गया

दीवानगी हो, अक्ल हो, उम्मीद हो कि यास
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया

दिल के मुआमलात में नासेह ! शिकस्त क्या
सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया

सैयाद शादमां है मगर ये तो सोच ले
मै आ गया कि साया तहे – दाम आ गया

दिल को न पूछ मार्काए – हुस्नों – इश्क़ में
क्या जानिये गरीब कहां काम आ गया

ये क्या मुक़ामे-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों
अक्सर तिरे बगैर भी आराम आ गया

By shayar

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