फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते-दर्दे-निहाँ से हम

इस दर्ज़ा बेक़रार थे दर्दे-निहाँ से हम
कुछ दूर आगे बढ़ गए उम्रे-रवाँ से हम

ऐ चारासाज़ हालते दर्दे-निहाँ न पूछ
इक राज़ है जो कह नहीं सकते ज़बाँ से हम

बैठे ही बैठे आ गया क्या जाने क्या ख़याल
पहरों लिपट के रोए दिले-नातवाँ  से हम

By shayar

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