ज़मी बदली, फ़लक बदला, मज़ाके-ज़िन्दगी बदला
तमद्दुन के कदीम अक़दार बदले आदमी बदला।

ख़ुदा-ओ-अह्रमन बदले वो ईमाने-दुई बदला
हुदूदे-ख़ैरो-शर बदले, मज़ाके-काफ़िरी बदला।

नये इंसान का जब दौरे – ख़ुदनाआगही बदला
रमूज़े – बेखुदी बदले, तक़ाज़ा-ए-ख़ुदी बदला।

बदलते जा रहे हम भी दुनिया को बदलने में
नहीं बदली अभी दुनिया? तो दुनिया को अभी बदला।

नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं
पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला।

कभी सोचा भी है, ऐ नज़्मे-कोहना के ख़ुदावन्दों
तुम्हारा हश्र क्या होगा, जो ये आलम कभी बदला।

इधर पिछले से अहले-मालो-ज़र पर रात भारी है
उधर बेदारी-ए-जमहूर  का अन्दाज़ भी बदला।

ज़हे-सोज़े-ग़मे-आदम, ख़ुशा साज़े-दिले-आदम
इसी इक शम्‍अ की लौ ने जहाने-तीरगी बदला।

नये मनसूर हैं, सदियों पुराने शैख़ो-क़ाज़ी हैं
न फ़तवे क़ुफ़्र के बदले, न उज्रे-दार ही बदला।

बताये तो बताये उसको तेरी शोख़ी-ए-पिनहाँ
तेरी चश्मे-तवज्जुह है तज्रे-बेरुख़ी बदला।

बफ़ैज़े-आदमे-ख़ाकी, ज़मी सोना उगलती है
इसी ज़र्रे ने दौरे-मह्‌रो-माहो-मुशतरी बदला।

सितारे जागते हैं, रात लट छटकाये सोती है
दबे पाँव किसी ने आके ख़ाबे-ज़िन्दगी बदला।

’फ़िराक़े’-हमनवा-ए-मीर-ओ-ग़ालिब अब नये नग़्मे
वो बज़्मे-ज़िन्दगी बदली वो रंगे-शाएरी बदला।

By shayar

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