सोज़े-पिनहाँ हो,चश्मे-पुरनम हो.
दिल में अच्छा-बुरा कोई ग़म हो.

फिर से तरतीब दें ज़माने को.
ऐ ग़में ज़िन्दगी मुनज़्ज़म हो.

इन्किलाब आ ही जाएगा इक रोज़.
और नज़्में-हयात बरहम हो.

ताड़ लेते हैं हम इशारा-ए-चश्म.
और मुबहम हो, और मुबहम हो.

दर्द ही दर्द की दवा ना बन जाये.
ज़ख्म ही ज़ख्मे-दिल का मरहम हो.

वो कहाँ जाके अपनी प्यास बुझाए.
जिसको आबे- हयात सम हो.

कीजिये जो जी में आये ‘फ़िराक़’.
लेकिन उसकी खुशी मुकद्दम हो.

By shayar

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