कोशिश हजार कर के भी ढूंढें जो उम्र भर।
तुम क्या हो क्या नहीं हो ये होगी नहीं खबर॥
आजाद हो इतने फिर करते हो दर बदर।
पाबन्द हो इतने कि होकर स्वांस भी अंदर॥
जाहिर इतने हो कि हर शय में जल्बागर।
छिपते हो कि इतने कहीं आते नहीं नज़र॥
फिर दूर हो इतने कि इस शक्ल से बाहर।
नजदीक हो इतने कि बनाया है दिल में घर॥
मिलते हो नहीं लुटाये कोई लाख सीमों जर।
मिलते हो ग़रीबों को तो आँसू के ‘बिन्दु’ पर॥

By shayar

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