वो खुशकिस्मत है जिसका श्यामसुन्दर से लगा दिल हो।
अगर दर्दे जुदाई का मज़ा उस दिल को हासिल हो॥
तड़प हो आह या ग़म हो, बिलखना हो या रोना हो।
ये सब सहकर भी उनकी फ़र्मावर्दारी में शामिल हो॥
अजब हो लुत्फ़ राहे इश्क़ पर इस तौर चलने में।
ख़याल-ए-यार हो नज़दीक लेकिन दूर मंज़िल हो॥
बसर करने की खातिर इस जहाँ में सोहबतें ना हो।
ग़रीबों का मजमा हो या मस्तानों की महफ़िल हो॥
तरक्की ख़्वाहिशें दीदार की हो दिन व रात इतनी।
कि हर दृग ‘बिन्दु’ हरि को देखने का आँख का तिल हो॥

By shayar

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