घनश्याम हमारा मनमोहन कुछ दोस्त है कुछ उस्ताद भी है।
कुछ होश में है कुछ मस्ती भी, कुछ बंधन कुछ आज़ाद भी है॥
कभी बेवफ़ा हो मुँह मोड़ता है, कभी पलभर न साथ छोड़ता है।
इससे ये है ज़ाहिर मेरी ख़बर कुछ भूल गया कुछ याद भी है॥
बहते हैं जो उनको निकलता है उजड़े हैं जो उनको सम्भालता है।
क्या खूब कि उसका ख़ाक ये दिल वीराना भी है आबाद भी है॥
कभी हँसता और हँसाता मुझे कभी रूठकर तड़पाता है मुझे।
सुखसिन्धु भी है दुःख‘बिन्दु’ भी है कुछ नर्म कुछ फौलाद भी है॥