रूठे हैं अगर श्याम तो उनको मनाए कौन?
अपनी जो बनी शान है तो उसको घटाए कौन?
कुछ उनका भला होता तो करते भी खुशामद,
अपनी गरज के वास्ते अहसां उठाए कौन?
अब तक तो रहे दोस्त बराबर का रहा दावा,
अब फ़र्ज-ए-बन्दगी की शराफ़त निभाए कौन?
माना कि जान उनकी है वो लेंगे आखी,
पर उनके ख़ताबार ये गर्दन झुकाए कौन?
गर कद्र करें वो तो उसपै ‘बिन्दु नज़र है,
वरना फ़िजूल ख़ाक में मोती लुटाए कौन?

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *