ये सच है मोहन कृपा न करते,
तो कौन अधमों को फिर बचाता।
अगर न होते अधम ही जग में,
अधम उधारण कहाँ से जाता।
अनेक अपराध प्राणियों के,
क्षमा जो करते हैं यह सही है।
परन्तु जो अपराध ही न होते,
तो कौन उनसे क्षमा कराता।
ये माना कि उनकी दयालुता ने,
उन्हें परेशान कर ही दिया है।
मगर न होती दया की सोहरत,
तो उनके दर पर ही कौन जाता।
पलट वो सकते हैं कर्म बंधन,
तभी तो जगदीश हैं कहाते।
अगर हुकूमत न इतनी होती,
तो कौन हाकिम उन्हें बनाता।
न शौक से वो सिर पर उठाते,
अधीन दोनों की आफतों को।
तो क्या थी गरज पड़ी किसी को,
आँखों से ‘बिन्दु’ मोतीलड़ लुटाता।