बाँका झूला सिय साजन कारी,
मोतिनहार, बंदनवार, हीरे हज़ार की कतार।
बार-बार छवि निहार, रतिपति निजमद भुलारी॥ बाँका झूला…
चम्पा, चमेली, मोतिया, बेला, जूही अकेली छवि सकेली।
झेलि-मेलि करत केलि, फूलों की महक से फूलारी॥
तापै विराजे अवधराज, जनक जी समेत आज।
लखत लाज त्यागि, सुजन छवि हरण विविध शूलारी॥ बाँका झूला…
अरुण बरण मंगल करण, दोऊ पिय प्यारी के चरण।
शरण ‘बिन्दु’ पातकी के सोई जीवन धन मूलारी॥ बाँका झूला…

By shayar

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