इस कदर श्याम से ही इश्क़ औ करम होने दो,
जी से उल्फ़त को घड़ी भर भी कम न होने दो।
दिल ये कहता है तसव्वुर को न मिटने दो कभी,
आँख कहती है कि दीदार-ए-सनम होने दो।
मचल रही है ज़ुबाँ तर्ज़े बयानी के लिए,
होश कहता है कि मुझमे भी तो दम होने दो।
जान कहती है कि क़ुर्बान मैं हूँगी पहले,
सिर ये कहता है कि पहले मुझे कलश होने दो।
आँख के ‘बिन्दु’ ये कहता है कि हट जाओ सभी,
तर ब तर हमसे ज़रा उनके क़दम होने दो।