हमको जग ने ख़ुद ही छोड़ा,
हमने तो जग में रहने का किया प्रयत्न न थोड़ा।
समझाने पर कभी न माना ये मस्ताना घोड़ा,
गई हेकड़ी भूल गया जब तिरस्कार का कोड़ा।
जिनसे सम्बन्ध कठिन पर्ण और प्रेम का जोड़ा,
स्वार्थ निकल जाने पर सबने हमसे नाता तोड़ा।
जिनके हित धन धाम धर्म, ईश्वर से भी मुख मोड़ा,
उन सबने सुखमय जीवन के पथ में अटकाया रोड़ा।
पीड़ा देता था विषयों का पका हुआ था फोड़ा,
अश्रु ‘बिन्दु’ विष निकल पड़ा जब अन्त:करण निचोड़ा॥

By shayar

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