मेरी फितरत नही थी के उसे सजा देती
वार्ना यकीन मानो उसकी हस्ती मिटा देती
ये मेरी परवरिश की तलब थी
के कदम कदम पर दुपट्टा संभाला
पर ये तेरी परवरिश का खोट था के तूने ये दुपट्टा बार बार उछाला
चाहती तो मैं भी तेरे हाथ काट देती
पर क्या करूँ ये मेरी परविरिष मैं नही था के तुझे सजा देती
कभी छम्मकचलो, छमिया और आइटम के नाम से आवाज लगाई
तूने जब जब मुझे देख सीटिया बजायी यू न समझना के मुझे नही दी सुनाई
चाहती तो तुझे पलट के जवाब देती
पर क्या करूँ ये मेरी फितरत मैं नही था के तुझे सजा देती
बार बार तूने रुसवा किया मुझे और फिर बदनामी का बोझ भी दिया
दामन को मैला किया तूने पहले और फिर खुद मेरे किरदार पर उंगली उठाई
चाहती तो तुझे तेरी बेटी बहन के आंचल के दाग दिखा देती
पर क्या करूँ ये मेरी फितरत मैं नही था के तुझे सजा देती
मेरी रुसवाई को अखबारों की सुर्खियां बना डाला
खुश तो बहुत होता होगा के तूने मेरा तमाशा बना डाला
कल शायद मेरी जगह तेरी खुद की बेटी होगी
क्योंकि मेरी फितरत नही के तुझे सजा देती
यकीन मानो तुझे पैदा करने वाली औरत भी अंदर रोती होगी
क्योंकि वो भी मेरी ही तरह बस ये ही सोचती ही रही होगी
के क्यों ये मेरी फितरत मैं नही था के तुझे सजा देती