गाह इधर देखना गाह उधर देखना
आह! न लेकिन उन्हें भर के नज़र देखना

आहे-शररबार का आज असर देखना
गुम्बदे-आफ़ाक़ को ज़ेर-ओ-ज़बर देखना

मेरे लिए जुर्म क्यों अंजुमने-नाज़ में
एक नफ़स बैठना, एक नज़र देखना

हम भी थे हाँ खुशनसीब हमको भी था हां नसीब
उठते ही मुंह यार का वक़्ते-सहर देखना

हो न सका हमसे तर्क, कर न सके तर्क हम
राह तिरी बार बार शाम-ओ-सहर देखना

एक संभाला फिर आह नज़अ का वो आख़िरी
फिर तिरे बीमार का जानिबे-दर देखना

देख चुके और तो चाराए-दिल करके हम
एक फ़क़त ऐ ‘वफ़ा’ रह गया मर देखना।

By shayar

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