मैं और तेरा शिकवा-ए-ज़ौरो-सितम ग़लत
बातिल,दरोग़, झूठ, ख़ुदा की क़सम ग़लत

काफ़िर तिरा बहानाए-दौराने-सर सहीह
लेकिन मिरा फ़सानाए- रंजो-अलम ग़लत

आख़िर निगाह बारे-नदामत से झुक गई
साबित न कर सके वो निशाने-क़दम ग़लत

दिल को बंधा गई थी जो तेरी निगाहे-नाज़
निकली है किस क़दर वो उमीदे-करम ग़लत

ले कर उधार भी हमें पीनी है ऐ ‘वफ़ा’
करना है मुफ़लिसी का ब-हर हाल ग़म ग़लत

By shayar

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