पामाले-आसमां हूँ कि उठते नहीं क़दम
मरदूदे-कारवां हूँ कि उठते नहीं क़दम

या चैन से न बैठने देता था पाए-शौक़
या इतना नातुवां हूँ कि उठते नहीं क़दम

सुनता हूँ सख़्त सुस्त बहुत हमराहों से मैं
इस पर भी बे-ज़बां हूँ कि उठते नहीं क़दम

या रब ये जलवा-गाह हूँ किस रश्क़े-माह की
या रब ये मैं कहां हूँ कि उठते नहीं क़दम

होता है शुबह राहनुमा पर रक़ीब का
इस दर्जा बदगुमां हूँ कि उठते नहीं क़दम

राहे-तलब में आब्ला-पाई से ऐ ‘वफ़ा’
अपने पे भी गिरां हूँ कि उठते नहीं क़दम

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *