ख़ुशा जलवाए नौबहारे-वतन
ख़ुशा मंज़रे लाला-ज़ारे-वतन

बयां क्या हो शाने-बहारे-वतन
है गुल-पोश हर रहगुज़ारे-वतन

बहारे-जिनां भी मुसल्लम, मगर
बहारे-वतन है बहारे-वतन

कली दिल की बेसाख़्ता खिल गई
जब आई बहारे-दयारे-वतन

वो ग़ुरबत की सब कुल्फ़तें मिट गयीं
नज़र आ गया जब ग़ुबारे-वतन

वो मखदूम-अहले-वतन क्यों न हो
जो दिल से है ख़िदमत-गुज़ारे-वतन

यही है यही हासिले-ज़िन्दगी
‘वफ़ा’ ज़िन्दगी हो निसारे-वतन

By shayar

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