गया तौबा का मौसम जोशे-मस्ती की बाहर आई
घटा बनकर नवेदे-रहमते-परवरदिगार आई

मिरे ज़ौक़े-खलिश की शर्म रख ली दश्ते-वहशत ने
कि इक इक गाम पर तलवों में सौ सौ नोके-ख़ार आई

सियह-बख़्ती रही ता-ज़िन्दगी मेरे मुक़द्दर में
हुआ जब ख़त्म रोज़े-हिज्र, शामे-इंतज़ार आई

ये गिरयां किस के मातम में है शबनम आखिरे-शब से
ये किस के फूल चुनने के लिए बादे-बहार आई

निज़ामे-दहर बदला गर्दिशे-अफ़्लाक से ऐसा
गुलिस्तां में चली आँधी बियाबां में बहार आई

‘वफ़ा’ इस शोरिश-आबादे-जहां में वक्फे-हैरत हूँ
रहीने-बे-ख़ुदी है ताक़ते-हंगामा-आराई।

By shayar

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