ग़रीबों कप बर्बाद करते रहे
यही ये परी-ज़ाद करते रहे
न देखा सितम-गर ने मुंह फिर कर
लबे-जख़्म फ़रयाद करते रहे
हुए लुत्फ के भी न ममनून ग़ैर
हमीं शुक्रे-बेदाद करते रहे
निगाहों से हसरत बरसती रही
हम आंखों से फ़रयाद करते रहे
रहे ख़ुद-फरामोश हम तो , मगर
तुम्हें रॉड इन याद करते रहे
बसर ज़िन्दगी क्या हुई ऐ ‘वफ़ा’
बसर शाद-ओ-नाशाद करते रहे