आंख से देखा है क्या कुछ बयां क्या कीजिए
इक जहां को दरपऐ-आज़ारे जां क्या कीजिए

ये हवादिस का तवातुर ये मसाइब का हुजूम
आरज़ूए-ज़िन्दगीए-जाविदां क्या कीजिए

बागे-हस्ती में कि तूफाने-शदाइद है बपा
ज़हमते-अज़्मे-बिनाए आशियाँ क्या कीजिए

हर किसी से शिकवा-ए-अहले-जहां का फायदा?
हर किसी से शिकवा-ए-अहले जहां क्या कीजिए

कीजिए ख़ुद ही सबीले-इब्तिदाए-इंक़िलाब
इंतिजारे-इंकिलाबे-आसमां क्या कीजिए

मेहरबानी रहम का है दूसरा नाम ऐ ‘वफ़ा’
मेहरबानी पर महब्बत का गुमां क्या कीजिए।

By shayar

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