न देखा जायेगा क्या बेबसी में जान पर मुझ से
ज़रा भी है अगर दिल में ख़ुदा का डर तो डर मुझ से

रकाबत पर उतर आये हैं आख़िर नामा-बर मुझ से
लगा देते है कुछ की कुछ उधरतुझ से इधर मुझ से

हुआ मालूम अपनी ही नहीं कुछ भी ख़बर उन को
कि चल कर पूछने आए हैं वो मेरी ख़बर मुझ से

रहें बैठे हुए वो तमकनत से बज़्मे-दुश्मन में
मिरी ता’ज़ीम को उठ उठ के मिलती है नज़र मुझ से

हंसी आती है उन की सादगी पर ऐ ‘वफ़ा’ मुझ को
जो रखते हैं तवक़्क़ो जुज़ दुआए बे असर मुझ से।

By shayar

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