हमारे दरपए-ईज़ा है चर्खे-बदश्आर अब भी
की हम हैं पामाले-गर्दिशे-लैलो-निहार अब भी

नमूना दश्ते-वहशत का है अपना लाला-ज़ार अब भी
बहार अपनी है ग़ैरों की खिजां से शर्मसार अब भी

गुज़श्ता तजरिबों से भी सबक़ हम कुछ नहीं सीखे
वही है एतबारे-वादाए-बेएतबार अब भी

ख़ुशामद अब भी शेवा कासा-लेसाने अज़ल का है
घिसी जाती है सजदों से ज़बीने-इंक्सार अब भी

सितम तोड़े हैं सालो-माह जिस ने ऐ ‘वफ़ा’ हम पर
उसी से हैं निगाहे-लुत्फ़ के उम्मीदवार अब भी।

By shayar

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