तिरे चलते हुए फ़िक़रे हैं या फौलाद के टुकड़े
इन्हीं टुकड़ों से होते हैं दिले-नाशाद के टुकड़े

उड़े बस अब उड़े चरख़े-सितम-ईजाद के टुकड़े
हवा में उड़ते फिरते हैं मिरी फ़रयाद के टुकड़े

मुझे आबो-हवाए-बाग़ रास आती तो क्या आती
मिरी तक़दीर में थे ख़ाना-ए-सय्याद के टुकड़े

उड़ा जाती है खलकत बे-तहाशा कूए-क़ातिल को
उड़ाए जाएंगे इक शाकिए-बेदाद के टुकड़े

उन्हीं पर दास्तानें बन गईं फरहादो-मजनूँ की
ज़बां-ज़द थे जो मेरे इश्क़ की रूदाद के टुकड़े

निशानी है यही ले दे के बाक़ी अहदे-उल्फ़त की
लगा रक्खे हैं सीने से दिले-बर्बाद के टुकड़े

अभी दर दर की मुझ को ठोकरें खानी हैं दुनिया में
अभी तक़दीर में हैं इस ख़राबाबाद के टुकड़े

ये शागिर्द आज कल के तौबा तौबा ऐ ‘वफ़ा’ तौबा
उड़ा डालें जो बस इनका चले, उस्ताद के टुकड़े।

By shayar

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