नैरंगे-चरख़े-शोबदागर कुछ न पूछिए
क्या हो रहा है शाम-ओ-सहर कुछ न पूछिए

ग़म का हुजूम शाम-ओ-सहर कुछ न पूछिए
होती है किस तरह से बसर कुछ न पूछिए

सब के नसीब में नहीं गुलशने-कूए-दोस्त
दिल-शादिए नसीमे सहर कुछ न पूछिए

अंदाज़ाए-निशाते-मुलाक़ात कीजिए
खमियाज़ा-ए-निशात मगर कुछ पूछिए

तूफ़ाने-इंतिशार की शिद्दत ख़ुदा पनाह
फैंका गया है कौन किधर कुछ न पूछिए

जिस का कुछ आसरा न हो उस रह सपार का
आलम क़रीबे-खत्मे-सफ़र कुछ न पूछिए

किस की गली में पाए गए खून के निशान
आई कहां से दिल की ख़बर कुछ न पूछिए

इस दौर में कि होते हैं ना-एहल सरफ़राज़
बेचारगीए अहले-हुनर कुछ न पूछिए

क्या कहिए याद आ गया क्या हज़रते ‘वफ़ा’
क्यों बज़्मे-दिल है ज़ेर-ओ-ज़बर कुछ न पूछिए।

By shayar

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