मर के ग़म से रहा हो गये हम
अपने मुश्किल-कुशा हो गये हम
मौत को चाहिए था बहाना
इश्क़ में मुब्तला हो गये हम
लीजिये नाम किस किस अदा का
हर अदा पर फ़ना हो गये हम
तुम से मिल कर ये आलम है अपना
जैसे ख़ुद से जुदा हो गये हम
ज़ब्त ने और ही गुल खिलाया
सर ब-सर इल्तिजा हो गये हम
कल रवा हर तमन्ना थी अपनी
आज क्यों ना-रवा हो गये हम
आसरा है फ़क़त अब ख़ुदा का
कितने बे आसरा हो गये हम
मुंह से सरका रहे हो कफ़न क्या
जाओ तुम से खफ़ा हो गये हम
फ़ैज़ समझो इसे मयकशी का
ऐ ‘वफ़ा’ बे-रिया हो गये हम।