रवां नग़मों का इस से ख़ुद ब-ख़ुद सैलाब होता है
रबाबे हुरर्यत कब तश्ना-ए-मिजराब होता है

बड़ी दिलकश है आज़ादी के गुलशन की फ़ज़ा लेकिन
ये गुलशन ज़िन्दगी के ख़ून से शादाब होता है

अगर छोटा हुआ हो जी, तो डर लगता है साहिल से
क़वी हो दिल तो बहरे बेकरां पायाब होता है

टपक पड़ता है जो यादे-वतन में चश्मे-महज़ू से
वो क़तरा अश्क़ का रश्क़े दुर-नायाब होता है।

By shayar

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