दिल की तस्कीं का आसरा न हुआ
सितम उन का करम-नुमा न हुआ

मेरे नालों से हिल गये अफ्लाक
तेरे दिल पर असर ज़रा न हुआ

जख़्म वो क्या जो भर गया आखिर
दर्द वो क्या जो ला-दवा न हुआ

टीस दिल की कभी फिरो न हुई
हाथ दिल से कभी जुदा न हुआ।

तेग़ जब इम्तिहान की उट्ठी
कोई आगे मेरे सिवा न हुआ

तू न चाहे तो और बात है ये
तूने चाहा जो किसी से वा न हुआ

तार टूटा तिरे तग़ाफ़ुल का
मिट गया मैं तो कुछ बुरा न हुआ

देर उस ने भी की तो आने में
सब्र तुझ से भी ऐ ‘वफ़ा’ न हुआ।

By shayar

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