नाकामिए-जावेद है इनआमे महब्बत
नाकामे-महब्बत नहीं नाकामे-महब्बत

वाबस्ता-ए-आग़ाज़ थी ये है शामे-महब्बत
वो सुब्हे महब्बत थी ये है शामे-महब्बत

क्या हो गई ये सूरते-अय्याम -महब्बत
वो सुबहे-महब्बत है न वो शामे-महब्बत

था सुब्हे-महब्बत पीवे गुमां शामे अवध का
थी सुब्हे बनारस से हसीं शामे-महब्बत

पड़ता है कभी चैन न लगती है कभी आंख
आफ़त है अज़ाबे-सहर-ओ-शाम-महब्बत

छोड़ आये हैं दिल हुस्न के उस शहर में हम भी
आये न जहां से कभी पैग़ामे-महब्बत

डरते हैं वो दुनिया से ख़ुदा से नहीं डरते
डरते हैं जो लेते हुए इल्ज़ामे-महब्बत

इल्ज़ामे-महब्बत दो ब-सद शौक़ मुझे तुम
लेता हूँ ब-सद शौक़ में इल्ज़ामे-महब्बत

हुशियार ख़बरदार कि ये दामे-रिया है
समझा है जिसे तू ने ‘वफ़ा’ दामे-महब्बत।

By shayar

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