नव जीवन की बीन बजाई।
प्रात रागिनी क्षीण बजाई।

घर-घर नये-नये मुख, नव कर,
भरकर नये-नये गुंजित स्वर,
नर को किया नरोत्तम का वर,
मीड़ अनीड़ नवीन बजाई।

वातायन-वातायन के मुख
खोली कला विलोकन-उत्सुक,
लोक-लोक आलोक, दूर दुख,
आगम-रीति प्रवीण बजाई।

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