भजन कर हरि के चरण, मन!
पार कर मायावरण, मन!
कलुष के कर से गिरे हैं
देह-क्रम तेरे फिरे हैं,
विपथ के रथ से उतरकर
बन शरण का उपकरण, मन!
अन्यथा है वन्य कारा,
प्रबल पावस, मध्य धारा,
टूटते तन से पछड़कर
उखड़ जायेगा तरण, मन!
भजन कर हरि के चरण, मन!
पार कर मायावरण, मन!
कलुष के कर से गिरे हैं
देह-क्रम तेरे फिरे हैं,
विपथ के रथ से उतरकर
बन शरण का उपकरण, मन!
अन्यथा है वन्य कारा,
प्रबल पावस, मध्य धारा,
टूटते तन से पछड़कर
उखड़ जायेगा तरण, मन!