कनक कसौटी पर कढ़ आया
स्वच्छ सलिल पर कर की छाया।

मान गये जैसे सुनकर जन
मन के मान अवश्रित प्रवचन,
जो रणमद पद के उत्तोलन
मिलते ही काया से काया।

चले सुपथ सत्य को संवरकर
उचित बचा लेने को टक्कर,
तजने को जीवित अविनश्वर,
मिलती जो माया से माया।

वाद-विवाद गांठकर गहरे
बायें सदा छोड़कर बहरे
कथा व्यथा के, गांव न ठहरे,
सत होकर जो आया, पाया।

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