आँसू की आँखों से मिल
भर ही आते हैं लोचन,
हँसमुख ही से जीवन का
पर हो सकता अभिवादन।
अपने मधु में लिपटा पर
कर सकता मधुप न गुंजन,
करुणा से भारी अंतर
खो देता जीवन-कंपन
विश्वास चाहता है मन,
विश्वास पूर्ण जीवन पर;
सुख-दुख के पुलिन डुबा कर
लहराता जीवन-सागर!
दुख इस मानव-आत्मा का
रे नित का मधुमय-भोजन,
दुख के तम को खा-खा कर
भरती प्रकाश से वह मन।
अस्थिर है जग का सुख-दुख,
जीवन ही नित्य, चिरंतन!
सुख-दुख से ऊपर, मन का
जीवन ही रे अवलंबन!
रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२