तपी आतप से जो सित गात,
गगन गरजे घन, विद्युत पात।
पलटकर अपना पहला ओर,
बही पूर्वा छू छू कर छोर;
हुए शीकर से निश्शर कोर,
स्निग्ध शशि जैसे मुख अवदात।
तपी आतप से जो सित गात,
गगन गरजे घन, विद्युत पात।
पलटकर अपना पहला ओर,
बही पूर्वा छू छू कर छोर;
हुए शीकर से निश्शर कोर,
स्निग्ध शशि जैसे मुख अवदात।