मख़्मूर[1] अपने दिल में, तकब्बुर[2] न लाइए,
दुनिया में हर उरूज[3] का एक दिन ज़वाल[4] है ।
मचलता होगा इन्हीं गालों पर शबाब कभी,
उबलती होगी इन्हीं आँखो से शराब कभी ।
मगर अब इनमें वह पहली-सी कोई बात नहीं
जहाँ में आह किसी चीज की सबात[5] नहीं ।
शब्दार्थ
ऊपर जायें ↑ नशे में चूर, उन्मत्त
ऊपर जायें ↑ अभिमान
ऊपर जायें ↑ बुलन्दी
ऊपर जायें ↑ पतन
ऊपर जायें ↑ स्थायित्व