नील-कमल-सी हैं वे आँख!
डूबे जिनके मधु में पाँख—
मधु में मन-मधुकर के पाँख!
नील-जलज-सी हैं वे आँख!
मुग्ध स्वर्ण-किरणों ने प्रात
प्रथम खिलाए वे जलजात;
नील व्योम ने ढल अज्ञात
उन्हें नीलिमा दी नवजात;
जीवन की सरसी उस प्रात
लहरा उठी चूम मधु-वात,
आकुल-लहरों ने तत्काल
उनमें चंचलता दी ढाल;
नील नलिन-सी हैं वे आँख!
जिनमें बस उर का मधुबाल
कृष्ण-कनी बन गया विशाल,
नील सरोरुह-सी वे आँख!
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२