मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
गुफ़्तुगू से जुनूँ टपकता है
मस्त हूँ मैं मेरी नज़र से भी
बाद-ए-लाला-गूँ टपकता है
हाँ कब ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
आह ‘अख़्तर’ मेरी हँसी से भी
मेरा हाल-ए-ज़ुबूँ टपकता है
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
गुफ़्तुगू से जुनूँ टपकता है
मस्त हूँ मैं मेरी नज़र से भी
बाद-ए-लाला-गूँ टपकता है
हाँ कब ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
आह ‘अख़्तर’ मेरी हँसी से भी
मेरा हाल-ए-ज़ुबूँ टपकता है